हमारी हिन्दू संकृति बहोत विलक्षण है | उसमे सभी सिधांत पूर्वतः विज्ञानिक है और उसका उदेश्य मनुष्य मात्र का कल्याण करना है | वास्तुशात्र एक विज्ञान है हमारे सिद्धो क्रान्तदर्शी ॠषिमुनि ने यह विज्ञान का अध्यन किया की मनुष्य का कल्याण हो | जन्मसे लेकर मृत्युपर्यन मनुष्य जिन जिन वास्तुऔ एवं व्यक्तिओं के संपर्क में आता है और जो जो क्रियाये करता है, उनसबका हमारे क्रान्तिदर्शी ॠषिमुनिऔ ने बड़े वैज्ञानिक ढंगसे सुनियोजित, मर्यादित एवं सुसंस्कृत किया | मनुष्य अपने निवास के भवन का निर्माण करता है तो उसे भी वास्तुशास्त्र के द्वारा मर्यादित किया ताकि वास्तु के अनुशार अपने भवन का निर्माण करके हमारा कल्याण हो | वास्तुशास्त्र उद्देश्य मनुष्य मात्र का कल्याण हो |
‘’ वास्तुशाश्त्रं प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ‘’ ( विश्वकर्मप्रकाश )
‘वास्तु’ सब्दका अर्थ है निवास करना , जिस भूमिपर हम वसते है ,निवास करते है उसे वास्तु कहा गया है |
प्रत्येक जीवित प्राणी कही ने कही अपने रहने के लिए , अपने व्यवसाय के लिए घर बनता है | प्रकृति के नियम के अनुसार यदि घर की निर्माण न हुआ हो तो घर तो बनता है पर वह शुभदायी नहीं होता |
इस लिए प्रकृति और वास्तु विज्ञान का उपयोग करके भवन-घर बनाना चाहिए | वास्तु के अनुसार यदि घर बना है तो हमें सुख-शान्ति मिलती है नहीतो बीमारी , हानी , दुःख सदेव बने रहता है |